कोच्चि – केरल उच्च न्यायालय ने सोमवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में चिकित्सकीय लापरवाही के आरोप में घिरे गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट डॉ. जोसेफ जॉन के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 304ए के तहत शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया। यह निर्णय “डॉ. जोसेफ जॉन बनाम केरल राज्य व अन्य” नामक याचिका पर सुनवाई के बाद सुनाया गया।
न्यायमूर्ति जी. गिरीश ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया कि:
“इलाज के दौरान हुई प्रत्येक मृत्यु के लिए डॉक्टर को आपराधिक रूप से दोषी नहीं ठहराया जा सकता, जब तक कि वह लापरवाही गंभीर, घोर और पेशेवर जिम्मेदारी से पूर्णतया विमुख न हो।”
मामले की पृष्ठभूमि:
यह मामला उस समय उत्पन्न हुआ जब एक 29 वर्षीय किडनी ट्रांसप्लांट मरीज की मृत्यु डॉ. जॉन के उपचार के दौरान हो गई। मरीज को पेट दर्द और उल्टी की शिकायत पर कोच्चि के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। जब उसकी तबीयत बिगड़ने लगी, तब ड्यूटी पर मौजूद नर्स ने डॉक्टर को फोन पर सूचित किया। डॉक्टर ने दवाइयां देने और नैदानिक परीक्षण कराने का निर्देश दिया। लेकिन मरीज ने 34 घंटे के भीतर दम तोड़ दिया।
मरीज के पिता ने डॉ. जॉन पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी। विशेषज्ञ पैनल की रिपोर्टों में इलाज को उचित बताया गया, परंतु राज्य स्तरीय एक शीर्ष चिकित्सीय निकाय ने डॉक्टर को फोन पर इलाज देने को दोषपूर्ण माना और उन पर IPC की धारा 304A के तहत कार्यवाही की सिफारिश की।
न्यायालय की टिप्पणी:
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि:
“केवल ऐसी स्थिति में डॉक्टर पर आपराधिक मुकदमा चलाया जा सकता है जब उसकी लापरवाही इतनी गंभीर हो कि वह घोर अज्ञानता या घोर उपेक्षा के दायरे में आए।”
“यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि मरीज की मृत्यु के मामलों में अक्सर डॉक्टरों को दोषी ठहराने की प्रवृत्ति देखी जाती है, जबकि कई बार मौत बीमारी की जटिलता और अपरिहार्यता के कारण होती है।”
कानूनी निष्कर्ष:
न्यायालय ने कहा कि डॉ. जॉन द्वारा मरीज को दिया गया इलाज मानक चिकित्सा प्रोटोकॉल के अनुरूप था।उनके खिलाफ घोर लापरवाही के कोई ठोस सबूत रिकॉर्ड पर मौजूद नहीं थे।इसलिए, उनके खिलाफ आपराधिक मामला कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग माना गया और उसे रद्द कर दिया गया।
प्रतिनिधित्व:
- डॉ. जॉन की ओर से अधिवक्ता सी.आर. श्यामकुमार, पी.ए. मोहम्मद शाह, सोराज टी. एलेनजिकल और उनकी टीम ने पक्ष रखा।
- राज्य सरकार की ओर से सरकारी वकील संगीतराज एन.आर. ने बहस की।