नई दिल्ली – राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने हाल ही में अशोक विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद की गिरफ्तारी और पुलिस रिमांड से संबंधित मीडिया रिपोर्ट्स पर स्वतः संज्ञान लेते हुए हरियाणा पुलिस महानिदेशक (DGP) को नोटिस जारी कर इस मामले में विस्तृत रिपोर्ट मांगी है।
NHRC ने कहा है कि रिपोर्ट में दर्ज आरोपों से प्रथम दृष्टया लगता है कि प्रोफेसर महमूदाबाद के मानवाधिकारों और स्वतंत्रता का उल्लंघन हुआ है। आयोग के प्रेस वक्तव्य में कहा गया है:
“प्राप्त मीडिया रिपोर्ट में दर्ज घटनाक्रम से प्रतीत होता है कि प्रोफेसर के मानवाधिकारों का उल्लंघन हुआ है, अतः यह एक उपयुक्त मामला है जिस पर आयोग स्वत: संज्ञान लेता है।”
मामले की पृष्ठभूमि:
प्रो. महमूदाबाद को 18 मई को हरियाणा पुलिस द्वारा दिल्ली से गिरफ्तार किया गया था और उन्हें दो दिन की पुलिस हिरासत में भेजा गया। यह गिरफ्तारी ऑपरेशन सिंदूर से जुड़ी उनकी सोशल मीडिया पोस्ट्स के संबंध में दर्ज दो एफआईआर के आधार पर की गई थी।
उन्होंने एक फेसबुक पोस्ट में लिखा:
“ऑपरेशन सिंदूर के माध्यम से भारत ने पाकिस्तान को यह संदेश दिया कि यदि आप अपने आतंकवाद की समस्या को नहीं सुलझाते, तो हम इसे सुलझाएंगे।”
साथ ही, उन्होंने युद्ध का अंध समर्थन करने वालों की आलोचना की और यह भी कहा कि:
“युद्ध के दोनों पक्षों में नागरिकों की मृत्यु दुःखद है और यह ही युद्ध से बचाव का मुख्य कारण होना चाहिए।”
उन्होंने यह भी टिप्पणी की कि जो लोग कर्नल सोफिया कुरैशी की भूमिका की सराहना कर रहे हैं, उन्हें भीड़ हिंसा और अवैध संपत्ति विध्वंस के पीड़ितों के लिए भी आवाज उठानी चाहिए।
दर्ज एफआईआर का विवरण:
- पहली एफआईआर युवक योगेश जटेरी की शिकायत पर भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 196, 197, 152, और 299 के तहत दर्ज की गई, जिसमें आरोप है कि पोस्ट से राष्ट्रीय एकता को खतरा हुआ है।
- दूसरी एफआईआर हरियाणा राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष रेणु भाटिया की शिकायत पर दर्ज की गई, जिसमें धारा 353, 79 और 152 BNS के अंतर्गत आरोप लगाए गए हैं। आरोप लगाया गया कि पोस्ट महिला सैन्य अधिकारियों के प्रति अपमानजनक थीं और सांप्रदायिक सौहार्द को नुकसान पहुँचाने वाली थीं।
महमूदाबाद की प्रतिक्रिया:
प्रोफेसर महमूदाबाद ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर अपने बयान में कहा कि:
“महिला आयोग ने मेरी टिप्पणियों को पूरी तरह से गलत समझा और उनके अर्थ को उलट दिया।”
न्यायिक कार्रवाई:
- 21 मई को उन्हें न्यायिक मजिस्ट्रेट आज़ाद सिंह के समक्ष प्रस्तुत किया गया, जहाँ पुलिस ने सात दिन की अतिरिक्त हिरासत की मांग की। अदालत ने यह मांग अस्वीकार करते हुए न्यायिक हिरासत में भेजने का आदेश दिया।
- 22 मई को सुप्रीम कोर्ट ने महमूदाबाद को अंतरिम जमानत दे दी, हालांकि एफआईआर रद्द करने से इंकार किया। साथ ही उन्हें निर्देश दिया कि वे इस विषय पर कोई नई सार्वजनिक टिप्पणी या पोस्ट न करें।