सुप्रीम कोर्ट ने बांके बिहारी मंदिर मामले में यूपी सरकार को लगाई फटकार
नई दिल्ली, 30 मई 2025: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उत्तर प्रदेश सरकार को वृंदावन के श्री बांके बिहारी मंदिर से जुड़े एक निजी विवाद में दखल देने के लिए कड़ी फटकार लगाई। जस्टिस बी.वी. नागरथना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने कहा कि अगर सरकार इस तरह निजी विवादों में शामिल होगी, तो कानून का शासन खत्म हो जाएगा। कोर्ट ने सवाल किया, “राज्य सरकार इस निजी मामले में कैसे पक्ष बन सकती है? अगर सरकारें निजी झगड़ों में दखल देंगी, तो यह कानून के शासन के लिए खतरा होगा।” यह बात कोर्ट ने तब कही, जब वह मंदिर के पुनर्विकास योजना से जुड़े 15 मई 2025 के अपने पुराने आदेश को वापस लेने की याचिका पर सुनवाई कर रहा था।
मामले की पूरी जानकारी
यह मामला वृंदावन के श्री बांके बिहारी मंदिर के प्रबंधन और कॉरिडोर बनाने की योजना से जुड़ा है। उत्तर प्रदेश सरकार ने मंदिर के आसपास 5 एकड़ जमीन खरीदने के लिए मंदिर के फंड का इस्तेमाल करने का प्रस्ताव रखा था, ताकि वहां कॉरिडोर बनाया जा सके। सुप्रीम कोर्ट ने 15 मई 2025 को इसकी मंजूरी दी थी, जिसमें मंदिर के फिक्स्ड डिपॉजिट का इस्तेमाल करने की इजाजत दी गई थी, लेकिन शर्त थी कि जमीन मंदिर के देवता के नाम पर रजिस्टर होगी।
इस फैसले के खिलाफ देवेंद्र नाथ गोस्वामी नाम के एक भक्त ने याचिका दायर की। गोस्वामी ने दावा किया कि वे मंदिर के संस्थापक स्वामी हरि दास जी गोस्वामी के वंशज हैं और उनकी फैमिली 500 साल से मंदिर का प्रबंधन कर रही है। उनके वकील कपिल सिबल ने कोर्ट में कहा कि बिना उनकी बात सुने, मंदिर के 300 करोड़ रुपये सरकार को दे दिए गए, जो गलत है। सिबल ने सवाल उठाया, “एक निजी मंदिर की कमाई को किसी दूसरी याचिका में आदेश देकर सरकार को कैसे सौंपा जा सकता है?”
सुप्रीम कोर्ट की चिंता
जस्टिस नागरथना ने सवाल किया कि सरकार एक निजी विवाद में कैसे पक्षकार बन सकती है। उन्होंने कहा, “हमारा सवाल सिर्फ इतना है कि दो निजी पक्षों के बीच के मामले में सरकार ने पक्षकार बनने की अर्जी क्यों दी? आप बिना पक्षकार बने भी मंदिर के लिए सुधार कर सकते हैं। इसमें क्या रुकावट है?” कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर सरकारें इस तरह निजी मामलों में दखल देंगी, तो यह कानून के शासन को तोड़ देगा।
जस्टिस शर्मा ने सुझाव दिया कि याचिकाकर्ता को अपने दावे के लिए रिव्यू याचिका दायर करनी चाहिए, लेकिन सिबल ने इसका विरोध करते हुए कहा, “हमें पहले पक्षकार बनाया जाना चाहिए था। आप बिना हमारी बात सुने हमारी निजी संपत्ति नहीं ले सकते।”
यूपी सरकार का जवाब
यूपी सरकार के वकील ने कोर्ट को बताया कि सरकार ने मंदिर के प्रबंधन और कॉरिडोर के काम के लिए एक ट्रस्ट बना दिया है। यह ट्रस्ट मंदिर के फंड को संभालेगा, न कि सरकार। सरकार ने 26 मई 2025 को एक अध्यादेश (ऑर्डिनेंस) जारी किया है, जिसके तहत ट्रस्ट मंदिर का प्रबंधन और कॉरिडोर का काम देखेगा। वकील ने कहा कि इस अध्यादेश की वजह से सरकार का फंड पर कोई नियंत्रण नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को आदेश दिया कि इस अध्यादेश की कॉपी याचिकाकर्ता को दी जाए और संबंधित विभाग के प्रिंसिपल सेक्रेटरी 29 जुलाई तक एक हलफनामा दाखिल करें। कोर्ट ने इस मामले में नोटिस जारी नहीं किया, लेकिन अगली सुनवाई 29 जुलाई 2025 को तय की।
मामले का इतिहास
बांके बिहारी मंदिर, जो 1862 में बना था, उत्तर भारत के सबसे ज्यादा दर्शन करने वाले तीर्थ स्थलों में से एक है। इसे स्वामी हरि दास ने स्थापित किया था और इसका प्रबंधन सेवायत (पुजारी) करते हैं। 2022 में जन्माष्टमी के दौरान मंदिर में भगदड़ जैसी स्थिति में दो लोगों की मौत के बाद कॉरिडोर बनाने की मांग उठी थी।
8 नवंबर 2023 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सरकार की कॉरिडोर योजना को मंजूरी दी थी, लेकिन मंदिर के फंड का इस्तेमाल करने पर रोक लगा दी थी। इसके खिलाफ यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की, जिसके बाद 15 मई 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने फंड के इस्तेमाल की इजाजत दी।
क्यों है विवाद
याचिकाकर्ता गोस्वामी का कहना है कि मंदिर का प्रबंधन उनके परिवार के पास 500 साल से है और सरकार का इस तरह दखल देना गलत है। उन्होंने कहा कि मंदिर के पुनर्विकास की योजना बिना उनकी राय के बनाई गई, जिससे मंदिर के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को नुकसान हो सकता है। दूसरी ओर, सरकार का कहना है कि कॉरिडोर से भक्तों को बेहतर सुविधाएं मिलेंगी, जैसे पार्किंग, शौचालय, और सुरक्षा चौकियां।
यह मामला मंदिर के प्रबंधन, धार्मिक स्वायत्तता, और सरकार की भूमिका को लेकर बड़े सवाल खड़े करता है। अगली सुनवाई में कोर्ट इस अध्यादेश और ट्रस्ट के बारे में और जानकारी लेगा।