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सड़क हादसे में मदद की, अब पुलिस के सवालों से जूझ रहे हैं ?

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परिचय

भारत की सड़कों पर हर दिन हजारों दुर्घटनाएँ होती हैं। इनमें से कई मामलों में अगर समय पर घायल को मदद मिल जाए, तो जान बच सकती है। लेकिन अफ़सोस की बात है कि बहुत से लोग मदद करने से कतराते हैं, क्योंकि उन्हें डर होता है कि कहीं पुलिस या कोर्ट-कचहरी के चक्कर में न फँस जाएँ।

हालांकि, भारत सरकार ने “Good Samaritan” यानी “नेक नागरिक” कानून के जरिए यह स्पष्ट कर दिया है कि यदि कोई व्यक्ति निःस्वार्थ भाव से किसी सड़क हादसे में घायल की मदद करता है, तो उसे पुलिस या कानूनी प्रक्रिया में घसीटा नहीं जाएगा।

फिर भी, बहुत बार ज़मीनी हकीकत अलग होती है — मदद करने वाले को ही पूछताछ, थाने के चक्कर, या केस में गवाह बनने के लिए मजबूर किया जाता है। इस ब्लॉग में हम जानेंगे कि ऐसे हालात में क्या करें, और अपने कानूनी अधिकारों की रक्षा कैसे करें।


1. “Good Samaritan Law” क्या है?

सुप्रीम कोर्ट ने 2016 में एक ऐतिहासिक निर्णय में “Good Samaritan” guidelines को कानूनी रूप से मान्यता दी। इसके मुख्य बिंदु हैं:

  • जो भी व्यक्ति सड़क दुर्घटना में घायल की मदद करता है, उसे पुलिस पूछताछ के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।
  • यदि मदद करने वाला व्यक्ति चाहे, तो वह अपनी पहचान गुप्त रख सकता है।
  • उसे कोर्ट में गवाही देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता, जब तक कि वह स्वयं तैयार न हो।
  • किसी अस्पताल को घायल का इलाज करने से इनकार नहीं करना चाहिए, भले ही पहचान न हो या पैसे न हों।

2. अगर पुलिस आपको परेशान करे तो क्या करें?

a. शांत रहें, पर अधिकारों का हवाला दें

यदि पुलिस आपसे बार-बार बयान देने को कह रही है, या पूछताछ में ज़रूरत से ज़्यादा समय बर्बाद कर रही है, तो आप शांति से बता सकते हैं:

“मैं एक Good Samaritan हूँ। मैंने सुप्रीम कोर्ट के आदेश अनुसार घायल की सहायता की है। मुझे पुलिस पूछताछ या कानूनी प्रक्रिया में बाध्य नहीं किया जा सकता।”

b. पहचान छिपाने का अधिकार

आप अपनी पहचान न बताने का अधिकार रखते हैं। आप बिना नाम बताए ही घायल को अस्पताल पहुँचा सकते हैं और निकल सकते हैं।

c. लिखित में कोई बयान देने से बचें

अगर आपसे कोई लिखित बयान माँगा जाए, तो आप यह कह सकते हैं कि आप कोई कानूनी प्रतिनिधि (वकील) के बिना कुछ भी नहीं लिखेंगे। Good Samaritan को किसी भी प्रकार का लीगल बयान देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।


3. वकील की सलाह कब लें?

अगर:

  • पुलिस बार-बार तंग कर रही है,
  • धमकियाँ दी जा रही हैं,
  • एफआईआर में नाम डालने की बात हो रही है,

तो तुरंत एक वकील से संपर्क करें। यह साफ तौर पर सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का उल्लंघन है। आप इस संबंध में हाई कोर्ट में रिट याचिका भी दायर कर सकते हैं।


4. शिकायत कहाँ करें?

  • SP या DSP को लिखित शिकायत दें।
  • NHRC (राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग) या State Human Rights Commission में ऑनलाइन शिकायत दर्ज की जा सकती है।
  • RTI के तहत पूछ सकते हैं कि किस अधिकार से पुलिस ने आपको पूछताछ में शामिल किया।

5. भविष्य में क्या सावधानियाँ बरतें?

  • घायल को अस्पताल ले जाएँ और तुरंत निकल जाएँ। मदद करने के बाद वहीं रुकना आपकी ज़रूरत नहीं है।
  • अगर रुकना पड़े तो वीडियो रिकॉर्डिंग करें कि आप घायल की मदद कर रहे हैं।
  • अस्पताल में यह कहें कि आप “Good Samaritan” हैं और नाम बताना नहीं चाहते।

निष्कर्ष

किसी की जान बचाना इंसानियत है — और अब कानून भी आपके साथ है। लेकिन ज़मीनी हकीकत में आपको अपने अधिकारों की जानकारी होनी चाहिए ताकि कोई भी आपको परेशान न कर सके। अगर पुलिस आपको फिर भी परेशान करे, तो आप कानून की मदद से खुद को सुरक्षित कर सकते हैं।

“मदद करना अपराध नहीं है, लेकिन मदद न करना अब भी एक नैतिक अपराध ज़रूर है।”

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