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“ना का मतलब ‘ना’ ही” बॉम्बे हाईकोर्ट का बलात्कार मामले में सख्त टिप्पणी

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मुंबई, 8 मई 2025-  हाल ही में एक अहम फैसले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने दोहराया है कि किसी महिला की असहमति को नजरअंदाज कर यौन संबंध बनाना बलात्कार की श्रेणी में आता है, और “ना का मतलब हमेशा ना ही होता है।” न्यायमूर्ति नितिन सूर्यवंशी और न्यायमूर्ति एम डब्ल्यू चांदवानी की खंडपीठ ने यह स्पष्ट किया कि यौन सहमति किसी विशेष अवसर तक सीमित हो सकती है, और इसे महिला के चरित्र या पूर्व संबंधों के आधार पर नहीं आँका जा सकता।

पीड़िता की सहमति का अनुमान नहीं लगाया जा सकता

फैसले में यह कहा गया कि “एक बार दी गई सहमति, भविष्य के हर अवसर के लिए सहमति नहीं मानी जा सकती।” कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि महिला के यौन जीवन या उसके द्वारा चुने गए संबंधों के आधार पर उसकी नैतिकता पर सवाल उठाना अनुचित और अस्वीकार्य है।

सहमति की व्याख्या पर सख्त रुख

कोर्ट ने बलात्कार को समाज में “सबसे निंदनीय अपराध” करार देते हुए यह कहा,

“एक महिला जब ‘ना’ कहती है, तो उसका अर्थ ‘ना’ ही होता है — इसमें कोई स्पष्टीकरण की आवश्यकता नहीं है।”

कोर्ट ने कहा कि बिना सहमति के यौन संबंध न सिर्फ शरीर पर हमला है, बल्कि यह मानसिक और भावनात्मक आघात भी पहुंचाता है।

तीन आरोपियों की सजा बरकरार

मामले में तीन आरोपियों ने अपील दायर की थी, जिसमें उन्होंने दावा किया कि पीड़िता पूर्व में एक आरोपी के साथ संबंध में थी। उन्होंने यह तर्क भी दिया कि पीड़िता के लिव-इन संबंधों से सहमति का अनुमान लगाया जा सकता है। कोर्ट ने इस तर्क को सिरे से खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि महिला के यौन संबंधों का इतिहास उसकी वर्तमान सहमति का निर्धारण नहीं करता।

हालांकि, कोर्ट ने उनकी आजीवन कारावास की सजा को कम करते हुए 20 वर्ष की कठोर सजा में परिवर्तित कर दिया, लेकिन दोषसिद्धि को पूरी तरह बरकरार रखा।

चरित्र और यौन जीवन पर टिप्पणी

कोर्ट ने इस मौके पर यह भी कहा:

“किसी महिला के यौन साझेदारों की संख्या उसके चरित्र का मापदंड नहीं हो सकती। कानून केवल सहमति को देखता है — न कि पूर्व संबंधों या सामाजिक धारणाओं को।”

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